गरीबी

 

कभी गरीबी की गलियों से गुजरो

कभी तुम गरीब – ई की गलियों से गुजरों
फीके पड़ जाते हैं दोस्त वोस्त रिश्ते विश्ते सब !

किसी मजदूर से न पूछो दिहाड़ी कहां जाती है
बाकी रह जाते हैं कर्जे बर्जे किस्ते बिस्ते सब !!

✍कवि दीपक सरल

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