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एक सुबह की किरण

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  एक सुबह की किरण एक सुबह की किरण कल-कल करती नदियां हैं , कोयल का राग सुनाना है ! आज आज की बात है .., कल का किसने जाना है!! तितली का चहकना, फूलों का मेहकना.., हर मन हर्षित करता फूलों का खिल जाना है !! भोर का अजब दृश्य मोहित मन हमारा है जिम्मेदारियां भी है काम पर भी जाना है!! दिनकर की किरणों से पृथ्वी कैसी चमक उठी चारों तरफ है बिखरा कैसा अजब नजारा है! ! ✍कवि दीपक सरल

वक्त लगता है Kavi Deepak saral

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  वक्त लगता है वक्त लगता है पुरानी दरख़्त हिलाने में वक्त लगता है सरल उबर के आने में वक्त लगता है ! खिलता नहीं है कमल गुलशन में कभी कांटो से साथ निभाने में वक्त लगता है! किनारों पर खड़ी हुई है कश्तियां कई, उजड़ने की कगार पर है बस्तियां कई, मुफलिसी में दबी पड़ी है हस्तियां कई बंजर में फूल खिलाने में वक्त लगता है! घर से निकलता है हर कोई स्वप्न ले कर किनारा करके आने में वक्त लगता है ! अनुकूल हो हालात चल लेता है हर कोई फौलादी जिगरा बनाने में वक्त लगता है! बहाकर ले जाती हैं लाशों को यह लहरें लहरों के विरुद्ध जाने में वक्त लगता है शहद मुंह से बिखेर देता है हर कोई , दिल में जगह बनाने में वक्त लगता है ! पुरानी दरख़्त हिलाने में वक्त लगता है सरल उबर के आने में वक्त लगता है!! ✍कवि दीपक सरल

करके तो कुछ दिखला ना

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  करके तो कुछ दिखला ना आना जाना आना जाना , करके तो कुछ दिखला ना संघर्षों के सागर में अब अपना परचम लहरा ना ! कई हार ‘हार के’ पहन भले जीत के अब है दिखलाना , कोई कितना भी रोके तुम्हें हार के आगे टिकना ना ! तुम वीर शिवा के वंशज हो रणभूमि – डर से रुकना ना फौलादी हो जिगरा ऐसा दुश्मन के आगे झुकना ना ! कुछ पल का है यह जीवन रे इस जीवन में कुछ कर जाना , कई सदियों से आना जाना जीवन यू ना व्यर्थ गंवाना ! कोई सदा धरा पर अमर नहीं कितना भी हो वह बलशाली, वो ही निज जग में अमर रहे कर गए जो यहाँ सदाचारी ! नित ज्ञान पथ पर चलता जा तू अंधकार से लड़ता जा , भर – अंतर्मन में ज्वाला ऐसी कहीं एक जगह पर टिकना ना ! लाख – चौरासी जन्म लिए तब निज मानुस देह पाई है, कुछ ऐसा करके जाना रे . इतिहास धरा का बदलता जा !! आना जाना आना जाना , करके तो कुछ दिखला ना संघर्षों के सागर में अब अपना परचम लहरा ना ! ✍कवि दीपक सरल

उसको भेजा हुआ खत

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  उसको भेजा हुआ खत उसको भेजा हुआ खत अब उसके पते पर नहीं जाता ! उसका कोई भी संदेशा अब मेरे तक क्यों नहीं आता !! ✍कवि दीपक सरल

कवि दीपक सरल

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  निभाना ना निभाना उसकी मर्जी साथ सात जन्म का यह है मेरी अर्जी , निभाना ना निभाना अब है उसकी मर्जी ! थोड़ी सी है खुशी थोड़ा सा है गम , कितने अजब है तुम और हम !! कुछ भी गलती हो माफी का सहारा, रिश्ता बना रहे अब तुम्हारा और हमारा ! छोटी-छोटी बातों पर उसका यूं रूठ जाना , अच्छा लगता है मुझे फिर फिर उसे मनाना ! कुछ तो मिले उसको हंसाने का अब बहाना , इसलिए करना पड़ता थोड़ा थोड़ा बचकाना !! अजब उसकी मुस्कान अजब उसका इतराना घायल कर ये जाता है उसका आंख चुराना !! ✍कवि दीपक सरल

गरीबी -कवि दीपक सरल की नई रचना

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  गरीबी …………………गरीबी………………….. ………….एक सितम है गहरा ………….. ………….उस पर भी होता है………….. …………लोगों का कड़ा पहरा ………… …….छोड़ जाने को हर कोई बेताब ……. …….किस कलम से लिखी किताब…….. ….हर रास्ते को मेहनत से सीख रहा है…. वह हौसले के दम पर अमीरी खींच रहा है अंधेरे आलम में जिद पर अकेला खड़ा है. सूरज के सामने वह जुगनू – सा अडा़ है.. आज मानो जीत ही लेगा जंग- ए- गरीबी. मानो सीच लेगा अमीरी से गरीबी को वह एक-एक करके छोड़ गए जो राहों में…… लौट आऐंगे जैसे आएंगे अमीरी के पल.. अमीरी आते ही लहजा सहज ही रहता है. गरीबी का समय उसके जहन में रहता है.. ..चढ़ती कहां है अमीरी उसके गुमान में… …..निगाह रहती हो चाहे आसमान में….. ….मौला बक्सों हर किसी को अमीरी…… ……….कमी ना आए किसी के…………. ……………..”सम्मान में”………………… गरीबी सबक है ………….. कमल हर जगह हर आलम में खिलता कहां है ……. अमीरी का अवसर गरीब के सिवा किसी और को मिलता कहां है !! ✍कवि दीपक सरल

भीगे भीगे मौसम में - कवि दीपक सरल

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  भीगे भीगे मौसम में भीगे भीगे मौसम में ….. कुछ मस्त बहारें आती है ! कुछ याद बसर करती है कुछ अजब नजारे लाती हैं ! ! जब बादल गर्जन करता है कोयल भी राग सुनाती है ! कभी गीत प्रकृति गाती है , मन को हर्षिल कर जाती है!! जब ऐसा आलम होता है मोर – पंख बिखराता है ! कलियां खिल खिल उठती है, जब तितली भी मडराती है !! कुछ मधुकर से गीतों से मन हर्षिल हो जाता है ! नदियां उमंग उफान में , नृत्य अजब दिखाती है !! उगती सूखी फसल को जल भर भर दे जाती है ! अन्न के उस दाता का , ईश्वर से मेल कराती है !! जो सत्य पथ से भटक गए गर्जना उसको सुनाती है ! जो सत्य पथ पर अडिग रहे अमृत – वर्षा कहलाती है !! वर्षों के बिछड़े आशिक को प्रियवर की याद दिलाती है ! मन को ऐसे महकाती है , जो याद याद बन जाती है !! भीगे भीगे मौसम में…. कुछ मस्त बहारें आती है ! कुछ याद बसर करती है , कुछ अजब नजारे लाती हैं !! ✍कवि दीपक सरल