गरीबी -कवि दीपक सरल की नई रचना

 

गरीबी

…………………गरीबी…………………..
………….एक सितम है गहरा …………..
………….उस पर भी होता है…………..
…………लोगों का कड़ा पहरा …………
…….छोड़ जाने को हर कोई बेताब …….
…….किस कलम से लिखी किताब……..
….हर रास्ते को मेहनत से सीख रहा है….
वह हौसले के दम पर अमीरी खींच रहा है
अंधेरे आलम में जिद पर अकेला खड़ा है.
सूरज के सामने वह जुगनू – सा अडा़ है..
आज मानो जीत ही लेगा जंग- ए- गरीबी.
मानो सीच लेगा अमीरी से गरीबी को वह
एक-एक करके छोड़ गए जो राहों में……
लौट आऐंगे जैसे आएंगे अमीरी के पल..
अमीरी आते ही लहजा सहज ही रहता है.
गरीबी का समय उसके जहन में रहता है..
..चढ़ती कहां है अमीरी उसके गुमान में…
…..निगाह रहती हो चाहे आसमान में…..
….मौला बक्सों हर किसी को अमीरी……
……….कमी ना आए किसी के………….
……………..”सम्मान में”…………………

गरीबी सबक है …………..
कमल हर जगह हर आलम में खिलता कहां है …….
अमीरी का अवसर गरीब के सिवा किसी और को मिलता कहां है !!

✍कवि दीपक सरल

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