भीगे भीगे मौसम में - कवि दीपक सरल

 

भीगे भीगे मौसम में

भीगे भीगे मौसम में …..
कुछ मस्त बहारें आती है !
कुछ याद बसर करती है
कुछ अजब नजारे लाती हैं ! !

जब बादल गर्जन करता है
कोयल भी राग सुनाती है !
कभी गीत प्रकृति गाती है ,
मन को हर्षिल कर जाती है!!

जब ऐसा आलम होता है
मोर – पंख बिखराता है !
कलियां खिल खिल उठती है,
जब तितली भी मडराती है !!

कुछ मधुकर से गीतों से
मन हर्षिल हो जाता है !
नदियां उमंग उफान में ,
नृत्य अजब दिखाती है !!

उगती सूखी फसल को
जल भर भर दे जाती है !
अन्न के उस दाता का ,
ईश्वर से मेल कराती है !!

जो सत्य पथ से भटक गए
गर्जना उसको सुनाती है !
जो सत्य पथ पर अडिग रहे
अमृत – वर्षा कहलाती है !!

वर्षों के बिछड़े आशिक को
प्रियवर की याद दिलाती है !
मन को ऐसे महकाती है ,
जो याद याद बन जाती है !!

भीगे भीगे मौसम में….
कुछ मस्त बहारें आती है !
कुछ याद बसर करती है ,
कुछ अजब नजारे लाती हैं !!

✍कवि दीपक सरल

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