अपना कुछ फर्ज लिखूं क्या
जीवन में है दर्द लिखूं क्या ।।
आवाजों में खुशी छुपाकर ।
कष्टों का क़र्ज़ लिखूं क्या ।।
उसने दर्द दिया है इतना ।
इसमें क्या में हर्ज लिखूं ।।
दुनियां की सौगात निराली ।
आने दुःख, खुशियां जानी ।।
कुछ तो मोल मिले ग़ैरत का ।
कोई तो समझे बात हमारी ।।
खुद को ,तनहाई का आलम ।
दिया, सबको सहारा हमने ।।
दर्द पे दर्द दिया है ,हमको ।
दिखता नहीं बेचारा , हममें ।।
जिंदगी का क्या ही कहना ।
हर कोई मिला बेचारा हम में ।।
आंखों पर क्यों पर्दा नम है ।
सांसे खुशियां दोनों कम है ।।
भीड़ भरी है रिश्तों की तो ।
फिर भी यहां अकेले हम है ।।
कवि दीपक सरल
Nice
जवाब देंहटाएंRadhe radhe
जवाब देंहटाएंRadhe Krishna
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