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Showing posts from March, 2023

एक सुबह की किरण

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  एक सुबह की किरण एक सुबह की किरण कल-कल करती नदियां हैं , कोयल का राग सुनाना है ! आज आज की बात है .., कल का किसने जाना है!! तितली का चहकना, फूलों का मेहकना.., हर मन हर्षित करता फूलों का खिल जाना है !! भोर का अजब दृश्य मोहित मन हमारा है जिम्मेदारियां भी है काम पर भी जाना है!! दिनकर की किरणों से पृथ्वी कैसी चमक उठी चारों तरफ है बिखरा कैसा अजब नजारा है! ! ✍कवि दीपक सरल

वक्त लगता है Kavi Deepak saral

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  वक्त लगता है वक्त लगता है पुरानी दरख़्त हिलाने में वक्त लगता है सरल उबर के आने में वक्त लगता है ! खिलता नहीं है कमल गुलशन में कभी कांटो से साथ निभाने में वक्त लगता है! किनारों पर खड़ी हुई है कश्तियां कई, उजड़ने की कगार पर है बस्तियां कई, मुफलिसी में दबी पड़ी है हस्तियां कई बंजर में फूल खिलाने में वक्त लगता है! घर से निकलता है हर कोई स्वप्न ले कर किनारा करके आने में वक्त लगता है ! अनुकूल हो हालात चल लेता है हर कोई फौलादी जिगरा बनाने में वक्त लगता है! बहाकर ले जाती हैं लाशों को यह लहरें लहरों के विरुद्ध जाने में वक्त लगता है शहद मुंह से बिखेर देता है हर कोई , दिल में जगह बनाने में वक्त लगता है ! पुरानी दरख़्त हिलाने में वक्त लगता है सरल उबर के आने में वक्त लगता है!! ✍कवि दीपक सरल

करके तो कुछ दिखला ना

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  करके तो कुछ दिखला ना आना जाना आना जाना , करके तो कुछ दिखला ना संघर्षों के सागर में अब अपना परचम लहरा ना ! कई हार ‘हार के’ पहन भले जीत के अब है दिखलाना , कोई कितना भी रोके तुम्हें हार के आगे टिकना ना ! तुम वीर शिवा के वंशज हो रणभूमि – डर से रुकना ना फौलादी हो जिगरा ऐसा दुश्मन के आगे झुकना ना ! कुछ पल का है यह जीवन रे इस जीवन में कुछ कर जाना , कई सदियों से आना जाना जीवन यू ना व्यर्थ गंवाना ! कोई सदा धरा पर अमर नहीं कितना भी हो वह बलशाली, वो ही निज जग में अमर रहे कर गए जो यहाँ सदाचारी ! नित ज्ञान पथ पर चलता जा तू अंधकार से लड़ता जा , भर – अंतर्मन में ज्वाला ऐसी कहीं एक जगह पर टिकना ना ! लाख – चौरासी जन्म लिए तब निज मानुस देह पाई है, कुछ ऐसा करके जाना रे . इतिहास धरा का बदलता जा !! आना जाना आना जाना , करके तो कुछ दिखला ना संघर्षों के सागर में अब अपना परचम लहरा ना ! ✍कवि दीपक सरल

उसको भेजा हुआ खत

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  उसको भेजा हुआ खत उसको भेजा हुआ खत अब उसके पते पर नहीं जाता ! उसका कोई भी संदेशा अब मेरे तक क्यों नहीं आता !! ✍कवि दीपक सरल

कवि दीपक सरल

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  निभाना ना निभाना उसकी मर्जी साथ सात जन्म का यह है मेरी अर्जी , निभाना ना निभाना अब है उसकी मर्जी ! थोड़ी सी है खुशी थोड़ा सा है गम , कितने अजब है तुम और हम !! कुछ भी गलती हो माफी का सहारा, रिश्ता बना रहे अब तुम्हारा और हमारा ! छोटी-छोटी बातों पर उसका यूं रूठ जाना , अच्छा लगता है मुझे फिर फिर उसे मनाना ! कुछ तो मिले उसको हंसाने का अब बहाना , इसलिए करना पड़ता थोड़ा थोड़ा बचकाना !! अजब उसकी मुस्कान अजब उसका इतराना घायल कर ये जाता है उसका आंख चुराना !! ✍कवि दीपक सरल

गरीबी -कवि दीपक सरल की नई रचना

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  गरीबी …………………गरीबी………………….. ………….एक सितम है गहरा ………….. ………….उस पर भी होता है………….. …………लोगों का कड़ा पहरा ………… …….छोड़ जाने को हर कोई बेताब ……. …….किस कलम से लिखी किताब…….. ….हर रास्ते को मेहनत से सीख रहा है…. वह हौसले के दम पर अमीरी खींच रहा है अंधेरे आलम में जिद पर अकेला खड़ा है. सूरज के सामने वह जुगनू – सा अडा़ है.. आज मानो जीत ही लेगा जंग- ए- गरीबी. मानो सीच लेगा अमीरी से गरीबी को वह एक-एक करके छोड़ गए जो राहों में…… लौट आऐंगे जैसे आएंगे अमीरी के पल.. अमीरी आते ही लहजा सहज ही रहता है. गरीबी का समय उसके जहन में रहता है.. ..चढ़ती कहां है अमीरी उसके गुमान में… …..निगाह रहती हो चाहे आसमान में….. ….मौला बक्सों हर किसी को अमीरी…… ……….कमी ना आए किसी के…………. ……………..”सम्मान में”………………… गरीबी सबक है ………….. कमल हर जगह हर आलम में खिलता कहां है ……. अमीरी का अवसर गरीब के सिवा किसी और को मिलता कहां है !! ✍कवि दीपक सरल

भीगे भीगे मौसम में - कवि दीपक सरल

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  भीगे भीगे मौसम में भीगे भीगे मौसम में ….. कुछ मस्त बहारें आती है ! कुछ याद बसर करती है कुछ अजब नजारे लाती हैं ! ! जब बादल गर्जन करता है कोयल भी राग सुनाती है ! कभी गीत प्रकृति गाती है , मन को हर्षिल कर जाती है!! जब ऐसा आलम होता है मोर – पंख बिखराता है ! कलियां खिल खिल उठती है, जब तितली भी मडराती है !! कुछ मधुकर से गीतों से मन हर्षिल हो जाता है ! नदियां उमंग उफान में , नृत्य अजब दिखाती है !! उगती सूखी फसल को जल भर भर दे जाती है ! अन्न के उस दाता का , ईश्वर से मेल कराती है !! जो सत्य पथ से भटक गए गर्जना उसको सुनाती है ! जो सत्य पथ पर अडिग रहे अमृत – वर्षा कहलाती है !! वर्षों के बिछड़े आशिक को प्रियवर की याद दिलाती है ! मन को ऐसे महकाती है , जो याद याद बन जाती है !! भीगे भीगे मौसम में…. कुछ मस्त बहारें आती है ! कुछ याद बसर करती है , कुछ अजब नजारे लाती हैं !! ✍कवि दीपक सरल

कवि दीपक सरल नई रचना

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  जरूरी कहां कुल का दिया कुल को रोशन करें जरूरी कहां कुल – दिया कुल को रोशन करें , ऊचे कुल में होकर भी संगति मार देती है ! भंवरों जरा बगीचों से संभल कर निकलो, फूलों की सुगंध अच्छे-अच्छे की मति मार देती है ! ! बीच भंवर में नैया है किनारा करके आना है , कुछ लोगों के ताने , कुछ पराजय मार देती है ! कई तपिश सहता है स्वर्ण जब चमक वो पाता है , तप कर बढ़ता है मोल यहां, सहज कहां से होता है ! कांटो में खिलता है देखो जिसको फूल गुलाब कहे , खुशबू बिखेरता मगर कांटो की सैयां मार देती है ! चार कदम चल कर के लौट आना उचित कहां है , संघर्ष छुपा है जीत में, मंजिल इतनी सहज कहां है ! सफलता के रास्ते पर कई असफलता चिंइत हैं , फिर फिर वापस लौट आने की आदत मार देती है ! ✍कवि दीपक सरल

गरीबी

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  कभी गरीबी की गलियों से गुजरो कभी तुम गरीब – ई की गलियों से गुजरों फीके पड़ जाते हैं दोस्त वोस्त रिश्ते विश्ते सब ! किसी मजदूर से न पूछो दिहाड़ी कहां जाती है बाकी रह जाते हैं कर्जे बर्जे किस्ते बिस्ते सब !! ✍कवि दीपक सरल

लेटेस्ट हिंदी कविता -जिसके दिल से निकाले गए

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  जिसके दिल से निकाले गए जिसके दिल से निकाले गए थे हम कभी उन्हीं की आंखों में हम बसने लगे हैं ! जिसपे मिलने की ना होती फुर्सत कभी वह हमसे मिलने को तरसने लगे हैं !! ✍कवि दीपक सरल

मोहब्बत

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  मोहब्बत हो जाए मैं इश्क लिखूं और यह सार्थक हो जाए, मैं उस में खो जाऊं ,वह मुझ में खो जाए! खुदा की रहमत इस कदर बरसे मुझ पर, मुझे ऐसे – फरिश्ते से मोहब्बत हो जाए !! ✍कवि दीपक सरल

अभी अभी की बात है

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  अभी अभी की बात है ये अभी-अभी की बात है, न जाने कभी की बात है ! वह ऐसे मिली थी मुझसे , लग रहा है मेरे साथ है !! कवि दीपक सरल

करीब आने नहीं देता

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  करीब आने नहीं देता करीब आने नहीं देता मुझे दूर जाने से भी डरता है ! यह कैसा महबूब है यार कैसी मोहब्बत करता है !! ✍कवि दीपक सरल

कवि दीपक सरल की नई रचना -कई सूर्य अस्त हो जाते हैं

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  कई सूर्य अस्त हो जाते हैं कई सूर्य अस्त हो जाते हैं , जब भोर निशा बन जाती है ! निशा से लड़ करके ही तो भोर सुबह – दिखलाती है !! संघर्ष – भरी यह जीत है , हर शख्स को आजमाती है! कुछ मार्ग में रह जाते हैं , कुछ को पार लगाती है !! यह जीत इतनी सहज कहा , कई हार ‘हार के’ पहनाती है ! जो जिद पर अडियल रहता है उसको ये शिखर दिलाती है !! ✍कवि दीपक सरल

हिंदी मुक्तक

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  दिल की चाहत करीब जाने की दिल की चाहत है जिसके वह शख्स फिर इतना मुझसे दूर क्यों है ! किसी और के दिल में घर करके बैठा है , उसी से मिलने को दिल मजबूर क्यों है !! इश्क हुआ है, यह दोनों की गनीमत है , फिर मैं कसूरवार, वह बेकसूर क्यों है !! ✍कवि दीपक सरल

हिंदी कविता -सुबह की एक किरण

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  सुबह की एक किरण सुबह की एक किरण, भोर का संदेशा लाई ! रात काली थी मगर , देखो अजब सवेरा लाई ! चिड़िया का पहचाना , कोयल- राग सुनाना ! कल-कल करती नदियां , फूलों का खिल जाना ! नई उमंग नया सवेरा , नई – नई तरंग लाई ! नई ऊर्जा , नया है जुनून मन में नया उत्साह लाई ! कहीं जेहन में दबे हुए नए-नए वो स्वप्न आई ! सुबह की एक किरण, भोर का संदेशा लाई ! ✍कवि दीपक सरल

एक चेहरा मन को भाता है

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  एक चेहरा मन को भाता है एक उजले उजले गीतों सा एक चेहरा मन को भाता है ! यूं चलती फिरती राहों में , कोई शख्स घर कर जाता है !! जब उनसे मिलन हो जाता है, मन ‘मन ही मन’ मुस्कुराता है ! कुछ बातें मन को भाती हैं, कुछ यादें मन को भाती हैं !! पतझड़ के मौसम में जैसे, मानो बसंत आ जाता है ! अंधकार सी निशा को जैसे भोर – सुबह कर जाता है !! एक रोते छोटे बच्चे को , मां का आंचल सुहाता है! जब गम के बादल आते हैं तो बारिश आ बन जाता है !! एक उजले उजले गीतों सा, एक चेहरा मन को भाता है ! यूं चलती – फिरती राहों में , कोई शख्स घर कर जाता है !! ✍कवि दीपक सरल

हिंदी कविता कवि दीपक सरल

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  कर कर के प्रयास अथक कर कर के प्रयास अथक करके बैठा प्रयास अथक वह ….कर एक प्रयास बस एक बार और………. स्वप्न स्वप्न सब भूल गया अब उम्मीदों से हारा है वह ….. कर एक प्रयास बस एक बार और……… जैसे तैसे धैर्य जुटाकर करने लगा अगला प्रयास वह फिर असफलता ……कर एक प्रयास बस एक बार और……… अगले की अब चाहा नहीं है आगे दिखता रहा नहीं है …….कर एक प्रयास बस एक बार और……… जैसे तैसे धैर्य जुटाकर करने लगा अगला प्रयास वह … फिर असफलता ,फिर असफलता ……कर एक प्रयास बस एक बार और……… उम्मीदों से टूट गया वो स्वप्न भी उसका छूट गया अब रहा से क्या लौट चलें अब…… ……कर एक प्रयास बस एक बार और……… उम्मीदों को फिर से संजोया धैर्य से बोला वह फिर….. एक और प्रयास……… ……कर एक प्रयास बस एक बार और……… अब असफलता हार गई थी और स्वप्न भी हुआ सार्थक सफलता का राज यही है ……कर एक प्रयास बस एक बार और……… सफलता है या असफलता है एक कदम का फासला ….कर एक प्रयास बस एक बार और……… ✍ कवि दीपक सरल

कवि दीपक सरल

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  सफलता की दहलीज पर सफलता की दहलीज पर एक कदम हमारा होगा , अपनी ताकत पहचानो कोई न बेसहारा होगा। दिल में उठेगी नई उमंग हर्षित देश हमारा होगा, नाकारी की धुंध छटेगी कर्मठ युवा हमारा होगा। अदियाले की परत छटेगी चारों ओर उजाला होगा जग में परचम लहराएगा यह जीवन निराला होगा। सफलता की दहलीज पर एक कदम हमारा होगा , अपनी ताकत पहचानो कोई न बेसहारा होगा।। ✍कवि दीपक सरल

ख्वाबों को हकीकत में बदल दिया

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  ख्वाबों को हकीकत में बदल दिया ख्वाबों को हकीकत में बदल दिया जाए, जो थी अधूरी दास्तां पूरा कर दिया जाए । अब हवाएं बह रही है अंतर्मन के जुनून की, अभी शहर की हालत को बदल दिया जाए।।

हिंदी कविता कवि दीपक सरल

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  मुकबल ख्वाब करने हैं…… मुकम्मल ख्वाब करने हैं, मुकम्मल बात करनी है । अधूरी रही जो कहानी , वो पूरी आज करनी है ।। अश्क जो बह रहे है अब, उन पर बरसात करनी है। अधूरी रही जो कहानी , वो पूरी आज करनी है ।। आज बैठकर खुदा से , यह फरियाद करनी है। अधूरी रही जो कहानी , वह पूरी आज करनी है।। मंजिल-ए-ख्वाब थी कभी, हकीकत आज करनी है। अधूरी रही जो कहानी , वह पूरी आज करनी है।। मेरी खामोशी सुनो जरा, यहीं पर रात करनी है । अधूरी रही जो कहानी, वह पूरी आज करनी है।। तेरी खुशबू से मुझको , रूह आबाद करनी है। अधूरी रही जो कहानी, वह पूरी आज करनी है।। खामोशी पर बजे तालियां ये बुलंद आवाज करनी है अधूरी रही जो कहानी वह पूरी आज करनी है ।। मुकम्मल ख्वाब करने हैं, मुकम्मल बात करनी है । अधूरी रही जो कहानी , वो पूरी आज करनी है । #कवि दीपक बवेजा सरल

हकीकत से रूबरू होता क्यों नहीं

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  हकीकत से रूबरू होता क्यों नहीं ख्वाबों में आने वाले ख्वाब हकीकत से रूबरू होता क्यों नहीं, स्वप्न में ही कट जाती है रात सरल रात भर सोता क्यों नहीं । कर्म के पायदान पर इस तरह कच्चे खड़े हैं हम अभी , खुदा को यू कोसना गलत है ख्वाब पूरा होता क्यों नहीं ।। ✍कवि दीपक सरल

इतना आसां कहां

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  इतना आसां कहां इतना आसां कहां सरल उभर के आना कई तपिश लगती है दूध को घी बनने में ❤️❤️ ✍कवि दीपक सरल

साथ आया हो जो एक फरिश्ता बनकर

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Home Search Dashboard Notifications SettSet थ आया हो जो एक फरिश्ता बनकर साथ आया हो जो एक फरिश्ता बनकर , तो तुम्हें साथ चलना अच्छा लगेगा ।।१ लाखों डूबाने पर आमादा समुंदर में , अब किनारा तुम को सच्चा लगेगा।।२ मुफलिसी में विताई , तमाम उम्र जिसने , उसके जख्म कुरेदना क्या अच्छा लगेगा ।।३ कई अनुभवों से गुजारी जिंदगी जिसने , उसके कदम नापना अब कच्चा लगेगा ।।४ जो शख्स अब शोहरत के लिबास में है उसकी कमियां बताता तू बच्चा लगेगा।। ✍कवि दीपक सरल

सपनों की तुम बात करो

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  सपनों की तुम बात करो काबू तुम जज्बात करो सपनों की तुम बात करो, जीवन रोशन करना है तो मेहनत तुम दिन रात करो, उम्मीदों के सूरज हो तुम अंधकार को तुम दूर करो, सर्व जगत में चमक सको चांदनी की बरसात करो, उजड़े हुए बगीचों में तुम खिली खिली सौगात करो, उड़ने पर उठ जाए सवाल भंवरे वाली तुम बात करो, ऐसे मेघा बन जाओ जो पतझड़ में बरसात करो, शौर्य गूंजे सर्व जगत में श्रम में काली रात करो , काबू तुम जज्बात करो सपनों की तुम बात करो।। ✍कवि दीपक सरल

आईना किसी को बुरा नहीं बताता

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  आईना किसी को बुरा नहीं बताता है आईना किसी को बुरा नहीं बताता है , आईना हर किसी को आईना दिखाता है। हर किसी को रूवानी बकसता है समंदर , मगर पार वही होता है जो डूब जाता है।। ✍कवि दीपक सरल

सच वह देखे तो पसीना आ जाए

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  सच वह देखे तो पसीना आ जाए झूठ के पांव पर खड़े रहना ठीक लगे उसको सच मगर वह देखे , तो पसीना आ जाए । मेरे दाता हर किसी को ऐसी रोशनी बक्सों, कि, उसको मरने से पहले जीना आ जाए।। ✍कवि दीपक सरल

कुछ तो ऐसा कर जाओ

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  कुछ तो ऐसा कर जाओ सर्व जगत की नजरें तुम पर, कुछ तो ऐसा कर जाओ! रणभूमि की शान बनो या , जीत का परचम लहराए!! परम पिता का हाथ है सर पर, तुम मत ऐसे घबराओ ! शौर्य गूंजे सर्व जगत में, ऐसा स्वर्णिम इतिहास बनाओ !! आएगा रोशन सवेरा, आंधीयो से ना घबराओ! नाव तुम्हारे बीच भंवर में , उसको तुम पार लगाओ!! #कवि दीपक बवेजा सरल

अपनी ताकत को कलम से नवाजा जाए

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  अपनी ताकत को कलम से नवाजा जाए अपनी ताकत को कलम से नवाजा जाए, हर बात मयस्सर होती कहां जमाने में । जरूरत आएगी तो हो जाएंगे रुखसत ; क्यों लगे हो इस दुनिया को आजमाने में ।। खुदा ने बख्शी है तुमको सौगात निराली; झांको को तो सही जरा अपने खजाने में । मिट्टी के घर हैं और आंधियों का दौर है फिर भी लगे हुए हैं आशियाना बनाने में ।। खुद से रूबरू देखो तुम्हारे जैसा कौन है, सदियां बीत रही खुद को बेहतर बनाने में। हटाओ पर्दे ; ताकत याद दिलाओ उसकी, सिंह क्यों झुक गया गीदड़ के आशियाने में।। सर उठाओ , और अपनी खुद्दारी भी रखो ; क्यों लगे हो यार दर-दर सर झुकाने में। क्यों जरूरत है तुमको सभाओं के आलम की क्या अजब मजा है अकेले में मुस्कुराने में ।। ☑कवि दीपक बवेजा सरल

कैसी अजब कहानी लिखूं

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 Korona ke samay per likhi gai Kavita . ( कोरोना का चित्रण करती हुई कविता ‌) कैसी अजब कहानी लिखूं कैसी अजब कहानी लिखूं किन आंखों का पानी लिखूं । यह वर्तमान के हालातों को सरकारों की जवानी लिखूं।। कानूनों का पालन लिखूं.. मजदूरों के आंसू लिखूं । राजनीति की कमियां लिखूं कैसे यह खामोशी लिखूं ।। धर्म का यह लोप लिखूं प्रकृति का प्रकोप लिखूं। कैसे यह निष्क्रियता लिखूं कैसी यह लाचारी लिखूं ।। उजड़ा हुआ सिंदूर लिखूं दवाओं की नीलामी लिखूं चिकित्सको का शुल्क लिखूं या उजड़ा हुआ मुल्क लिखूं ।। सभी मुनाफे में आमादा किस की कमियां लिखूं। उम्मीदों के सागर लिखूं या हाथों का गागर लिखूं।। ✍कवि दीपक बवेजा

अब अरमान दिल में है

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  अब अरमान दिल में है कुछ तो कर गुजरने का अब #अरमान दिल में है ! जमीन नहीं है मंजिल मेरी खुला #आसमान दिल में है!! #आसमानों की जद में रहना, फिर भी अपनी #हद में रहना, जो है अपने कद में रहते ; उनका #सम्मान दिल में है!! नहीं हदों का #खौफ जिनको, बुलंद सपनों की जद में है! समुद्रों में कुछ भी नहीं है ; जो मिठास #स्वप्न_मद में है!! जान लुटाने को तैयार; हमेशा रहते तत्पर जो! धन्य है यह मां भारती, ऐसे सिपाही सरहद में है!! आंधियां चलने लगी, हौसला भी उड़ गया! फिर -2 तिनका लाने का, अजब #हौसला दिल में है!! लहरों के साथ बहा कभी, लहरों के विपरीत खड़ा है ! संघर्षों में जिद पर अड़ा है, अब यह गुमान दिल में है!! #दीपक_बवेजा_सरल

दर्द ए हया को दर्द से संभाला जाएगा

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  दर्द ए हया को दर्द से संभाला जाएगा दर्द ए हया को दर्द से संभाला जाएगा , कांटा गया है कांटे से निकाला जाएगा ! वह शख्स जो सच के पायदान पर चलने लगा, लगता है राजनीति से निकाला जाएगा !! #दीपक_बवेजा

इससे बड़ा हादसा क्या

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  इससे बड़ा हादसा क्या वह शख्स घर से ही ना निकला हादसों के डर से! जिंदगी यू ही निकल रही इससे बड़ा हादसा क्या !! ✍कवि दीपक सरल

रोशन सारा शहर देखा

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  रोशन सारा शहर देखा रोशन सारा शहर देखा, पर दीए तले अंधेरा देखा ! पानी भरे समंदर देखे , फिर भी हमने प्यासा देखा!! भरे भरे धन कोष देखें, उनका छोटा मन देखा है ! मंदिरों में छत्र चढ़ा है, बाहर पड़ा निर्धन देखा है !! ऊंची ऊंची इमारतों में, काम करते मजदूर देखें ! सर ढकने को छत नहीं, फिर भी हंसते चेहरे देखे!! ठहरने की फुर्सत नहीं , ऐसा व्यस्त जमाना देखा! आंधियों में उड़ती इमारतें, पर लोगों का इतराना देखा!! ✍कवि दीपक सरल

सपना देखा है तो

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  सपना देखा है तो स्वप्न जो देखा है तो स्वप्न को मुकम्मल करना मुफलिसी खुदा ने ना बख्शी किसी को मुकद्दर में।।

चांदनी चकोर सा रिश्ता तेरा मेरा

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  चांदनी चकोर सा रिश्ता तेरा मेरा चांदनी-चकोर सा रिश्ता तेरा मेरा, चांदनी चकोर सा रिश्ता तेरा मेरा, रिश्ते को खूबसूरती से निभाने लगा पहले से ज्यादा अब क्यों चाहने लगा !! दिल की गुफ्तगू को यूं बतलाने लगा ख्वाबों मैं आ करके क्यों सताने लगा !! मुझ पर दिल क्यों तेरा डगमगाने लगा रास्तों में बार-बार अब आने जाने लगा !! छोटी-छोटी बात पर मुस्कुराने लगा अंदर ही अंदर इश्क को जताने लगा !! कवि दीपक बवेजा